नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-36
हे महान बभ्रुवाहन आप रानी उलूपी के रहते भला क्यों संताप करते हो। जिन्हें आपने पराजित किया है। वह महावीर अर्जुन समय की गति के कारण और नियमानुसार सृष्टि की रचना से पूर्ण लिखे गए नियमों को मानते हुए स्वयं ही तुमसे हार गए। ऐसा समझों और अपनी माता उलूपी से विनती करो। वह यथाशीघ्र ही उन्हें जीवित कर देगी।
ऐसा परम शक्तिशाली नागमणि इनके पास पहले से ही मौजूद है। इतना सुनते ही उलूपी, अर्जुन, बभ्रुवाहन और अर्जुन पुत्र ईरावण सभी ने चमत्कारिक रूप से प्रकट हो लक्षणा को आशीर्वाद दिया और परीक्षा का कारण बताते हुए यह कहा, कि समय के बदलते चक्र के कारण मनुष्यों चमत्कारिक शक्तियों और उनके महत्व को भूलता जा रहा है। वह चाहता तो है कि शक्तियां उसे प्राप्त हो, लेकिन उनका उपयोग और उनकी महत्ता से अनजान बना रहता है। तब भला यह कैसे संभव है कि वह उन शक्तियों को प्राप्त करने की योग्यता हासिल कर सके।
लक्षणा इसके आगे तुम्हें अगले द्वार पार करते समय ऐसी ही एक पौराणिक कथा में छुपे सवाल का जवाब देना होगा। क्योंकि अगला पल गंधर्व राज की सीमा से होकर गुजरता है। और वह बिना प्रश्न का उत्तर दिए आगे का रास्ता नहीं दे सकते। यह कहते हुए एक साथ तेज रोशनी प्रकट हुई। और सब कुछ वहां से गायब हो गया। वह कमल की कली और विकसित हो गई। देखते ही देखते एक मनोरम दृश्य हरे भरे बगीचे के साथ प्रकट हुआ। जिसमें लक्षणा ने स्वयं को एक सरोवर के नजदीक पाया।
जहां पहुंचते ही अचानक लक्षणा को कुछ दिन पूर्व ही उसकी सात्विक घटना याद आ गई। और वाकई एक साथ उस सरोवर से वही देवी, राजकुमार और वह बालक उसके तट पर प्रकट हुए और कहने लगे,,,,,, लक्षणा अब तुम्हें परीक्षा की आवश्यकता नहीं, क्योंकि तुम पहले ही अपनी योग्यता सिद्ध कर चुकी हो। हम तुम्हें आगे की शुभकामनाओं के साथ अग्रिम सभी द्वार के सफर से मुक्त करते हैं, क्योंकि वे सभी परीक्षाएं तुम पूर्व में ही दे चुकी हो, इसलिए अब तुम्हें किसी और परीक्षा की आवश्यकता नहीं तुम्हारा कल्याण हो, कहते हुए उन्होंने लक्षणा को एक विशेष मंत्र दोहराने को कहा।
लक्षणा ने उस मंत्र को जैसे ही दोहराया वहां का सारा वातावरण परिवर्तित हो गया। और वह पुष्प कमल पूरी तरह एक पूर्ण कमल में खिलने लगा। उस स्थान की शोभा देखते ही बनती थी। तेज हवा की लहरें समुद्र के बीचो-बीच किसी संदूक की तरह पारदर्शी जल के मध्य नागपत्री का सुंदर स्वरूप जो सूर्य से भी कहीं ज्यादा रोशनी के साथ चमत्कारिक होती। उसका हर पन्ना जब खुलता तो उससे निकलने वाले मंत्रों की ध्वनि संपूर्ण वातावरण में गुंजायमान होकर एक अपूर्व शक्ति प्रदान करती।
अचानक लक्षणा ने देखा कि एक कुत्ता उसके कपड़े खींचकर एक दिशा की ओर ले जाने का प्रयास कर रहा था। जिसे देखकर लक्षणा पहचान गई, और उसे धन्यवाद कर कहने लगी, उस तपस्थली में वह तपस्या मैं पूर्ण कर पाई हूं। आपका सादर आभार। तब स्वयं राहु केतु ने प्रकट होकर लक्षणा को आशीर्वाद दिया। और कहा लक्षणा इस स्थान तक पहुंचना आसान हो सकता था। लेकिन बिना हमारी अनुमति के कोई इसके आगे जा सके यह संभव नहीं।
लक्षणा जैसा कि हमने तुम्हें आशीर्वाद दिया है, उसके अनुसार हम तुम्हें आगे जाने का मार्ग बताकर मंगल कामना के साथ आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह शावक जिस स्थान पर जाकर लुप्त हो जाए। वही तुम यह ब्रह्मकमल छोड़ देना और उसी समय मेरा यह शावक तुम्हें प्रकाश की गति से नागपत्री तक पहुंचा देगा। जिस समय नागपत्री के सारे रक्षक उस ब्रह्म कमल को पाने की चेष्टा करेंगे। उतने समय में तुम नागपत्री की आराधना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर लौट आना।
लक्षणा ने बिल्कुल ठीक वैसे ही किया। जैसे ही नियत स्थान पर जाकर शावक रुका। लक्षणा ने वह ब्रह्म कमल पूरे आदर के साथ उस सागर को समर्पित किया। जिससे अचानक तेज सुगंध प्रभावित होने लगी। जिसने सारे वातावरण को मोहित कर लिया और फिर चमत्कारिक रूप से वह शावक लक्षणा को लेकर नागपत्री के समीप खड़ा हो गया। तब तक उस खुशबू की और आकर्षित सभी रक्षक नाग कमल की और गए। तब नागपत्री तक पहुंचने के लिए लक्षणा ने अपनी इच्छा शक्ति से नाग रूप धारण कर उस नागपत्री के बताएं अनुसार विशेष आराधना की।
जिससे प्रसन्न होकर नागपत्री कन्या रूप ले लक्षणा से बोली.... लक्षणा मैं ठीक तुम्हारे कहे अनुसार इस सृष्टि के कल्याण के लिए अपनी शक्ति के संचारण की व्यवस्था के लिए तुम्हें वरदान देती हूं। जिस मार्ग से तुम और तुम्हारी यह बाकी प्रतिरूप जो मुझ तक पहुंची है, अपने-अपने लोक में मेरे आशीर्वाद से इसी क्षण पहुंच जाओगी। उसी स्थान पर जहां तुम पहुंचो वहां नाग कन्याओ का मंदिर स्थापित कर देना। मेरी शक्तियां वहां आने वाले हर प्राणी को प्राप्त होगी।
वो जहां-जहां वापस लौट कर जाएंगे, वहां-वहां तक भी मेरी शक्ति का प्रताप उनके साथ बना रहेगा। जिससे समस्त लोक का कल्याण होगा। लक्षणा मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं कि तुम आज से अजेय और अमर हो। ब्रह्मांड की कोई भी शक्ति तुम्हें पराजित नहीं कर सकती। कोई विष तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकता। कोई भी अस्त्र-शस्त्र तुम पर प्रभावी नहीं होगा।
लक्षणा इन सबसे बढ़कर मैं तुम्हें वह आशीर्वाद देती हूं, जिसे सभी साधक चाहते हैं। वह यह है कि तुम्हारे मन में सदा से ही शिव परिवार और हमारे प्रति भक्ति भाव बना रहेगा। हमारे माता-पिता और भ्राताओ का आशीर्वाद और विशेष कृपा तुम पर हमेशा बनी रहेगी, यह कहते हुए तुम्हारा कल्याण हो... तुम्हरा कल्याण हो.... वह कन्या अंतर्ध्यान हो गई।
तेज रोशनी के साथ वह शावक अचानक अदृश्य हो गया। लक्षणा को ऐसे लगा जैसे किसी ने बड़े तेज वेग से उसे पाताल से धरती की ओर उछाल दिया गया हो। लेकिन उसके मन में जरा भी भय नहीं था। और अचानक उसने आप अपने आपको उस मंदिर के समीप पाया। जहां आचार्य चित्रसेन जी हमेशा की तरह पूजा करते नजर आए। लक्षणा ने जैसे ही इस मंदिर में कदम रखा। अपने आप को बहुत हल्का सा महसूस करने लगी।और उसके चेहरे का ओज देखने लायक था। लक्षणा ने सबसे पहले मंदिर में बनी नाग प्रतिमा के आगे शीश झुका कर आशीर्वाद लिया। और आचार्य चित्रसेन जी की और चल पड़ी।
क्रमशः....